गाया है नुसरत फतेह अली खाँ ने।
लिखा है जावेद अख़्तर ने।
गीतायन पर खोजें
असल
में
हुस्ने जानाँ की तारीफ़ मुमकिन नहीं...
रमण कौल ने जैसा सुना/समझा
उसने जाना कि तारीफ़ मुमकिन नहीं...
4
की पसंद - मेरी भी!
1
और ने यही समझा - मैंने
भी!
चर्चा
सर्वाधिकार सुरक्षित © 2005 विनय जैन