गाया है नुसरत फतेह अली खाँ ने। लिखा है जावेद अख़्तर ने। गीतायन पर खोजें

असल में

हुस्ने जानाँ की तारीफ़ मुमकिन नहीं...

रमण कौल ने जैसा सुना/समझा
उसने जाना कि तारीफ़ मुमकिन नहीं...

बकौल रमण कौल,
मैंने तो सही सुना था, पर किसी और ने फेसबुक पर ऐसा लिखा था
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1 और ने यही समझा - मैंने भी!


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